Paris, March 30, 2024
A Divine Melody - (In Hindi and English) - For Awakening in the Melody Divine of Life - Love
ब्रह्म-संगीत
A Divine Melody
सत्य, ब्रह्म, परम चैतन्य के प्रत्यक्षबोध को उपलब्ध होकर श्वेताश्वतरोपनिषद के ऋषि संपूर्ण मानवता के प्रति करुणा से द्रवित होकर यह "ब्रह्म संगीत" गा रहे हैं -
After direct perception of the Truth, the Brahman, the Real Self, sage of "Shvetaashvatar Upanishad" sings this "Divine Melody" out of compassion for the whole humanity -
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा,
आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्
आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वापि मृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यते अयनाय।।
हे, अविनाशी चैतन्य में प्रतिष्ठित अमृत के सभी पुत्र, सुनो - उस परम (कालातीत) पुरुष का प्रत्यक्षबोध हुआ है, जो 'मैं'-पनारूपी अंधकार से परे सदा प्रकाशमान है। केवल उस परम पुरुष के प्रत्यक्षबोध से ही अमृत-जीवन के प्रवाह को उपलब्ध हुआ जा सकता है। अन्य कोई मार्ग नहीं है।
O, all the immortal sons established in the divine Intelligence, listen -
There is a direct perception of the Supreme Intelligence which is beyond time by the watch, beyond the darkness of 'I'-ness, and is always illuminating. By directly perceiving that Supreme Intelligence, one flows in Life Eternal. There is no other way.
यश्चायमस्मिन् आकाशे तेजोमय
अमृतमय पुरुषः सर्वानुभूः ।
यश्चायमस्मिन् आत्मनि तेजोमय
अमृतमय पुरुषः सर्वानुभूः ।
तमेव विदित्वापि मृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यते अयनाय।।
और वह जो इस अनन्त अस्तित्व में स्थित प्रकाशमय नित्य पुरुष है, वही सब कुछ अर्थात् भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत काल का साक्षी है। और इस शरीर में स्थित प्रकाशमय, नित्य पुरुष सब कुछ यानी कि जाग्रतावस्था, स्वप्नावस्था और सुषुप्ति अवस्था का साक्षी है। यहां दो नहीं है। उसके प्रत्यक्षबोध से ही मृत्यु की भ्रांति से परे अमृत-जीवन अनुभूत होता है। अन्य कोई मार्ग नहीं है।
And that always illuminating and immortal Supreme Intelligence existing in this sky (whole Existence), is witness to all ( past, present and future). And that Supreme Intelligence in this body, is always witness to our waking state, dream state and deep sleep state. There are no two. By directly perceiving that Supreme Intelligence only, one can go beyond the illusion of death. There is no other way to understand immortality.
नैतज्ज्ञेयं नित्यमेवात्मसंस्थं
नातः परं वेदितव्यं हि किंचित्।
संप्राप्यैनमृषयो ज्ञानतृप्ताः
कृतात्मानो वीतरागाः प्रशान्ताः।
तमेव विदित्वापि मृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यते अयनाय।।
नित्य स्वयं में ही स्थित होने के कारण उसे जाना नहीं जा सकता। परंतु उसके अतिरिक्त और कुछ भी जानने योग्य नहीं है। ऋषिगण ( अर्थात् तत्त्वदर्शी ) उसे प्रत्यक्षबोध द्वारा पूर्णरूप से उपलब्ध होकर ज्ञानतृप्त, स्थिरचित्त, वीतराग ( आसक्ति तथा विरक्ति से मुक्त ) और प्रशांत हैं। केवल उस परम पुरुष के प्रत्यक्षबोध से ही विभेदकारी चित्तवृत्ति के पार जाया जा सकता है। अमृतत्व अर्थात् विभाजनरहित जागृति को उपलब्ध होने के लिए अन्य कोई मार्ग नहीं है।
That is unknowable because That always exists within the self. However, nothing is worth knowing except That. Rishis (who have seen the Truth) having been available to That through the direct perception, are always established in the energy of knowing, still mind, freedom from attachment and detachment; and Supreme Peace without any disturbance whatsoever.By directly perceiving that Supreme Intelligence, one can go beyond the divisive consciousness. There is no other way for availability to Immortality or the division-free Awareness.
Jai Rishi!
Jai Guru!